भूगोल विभाग परिषद ने वर्षा जल संरक्षण पर जागरूकता कार्यक्रम किया
टिहरी। शहीद बेलमती चौहान राजकीय महाविद्यालय पोखरी, क्वीली, टिहरी गढ़वाल की प्राचार्य डॉ. शशिबाला वर्मा के निर्देशन में भूगोल विभाग परिषद द्वारा वर्षा जल संरक्षण विषय पर महाविद्यालय की छात्राओं हेतु जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में भूगोल विभाग प्रभारी डॉ. सुमिता पंवार ने महाविद्यालय की छात्राओं को वर्षा जल सरंक्षण आवश्यकता तथा महत्ता विषय पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि वर्षा जल संचयन वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है।
विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। इसका कारण पृथ्वी के जलस्तर का लगातार नीचे जाना भी है। इसके लिये अधिशेष मानसून अपवाह जो बहकर सागर में मिल जाता है, उसका संचयन और पुनर्भरण किया जाना आवश्यक है, ताकि भूजल संसाधनों का संवर्धन हो पाये। अकेले भारत में ही व्यवहार्य भूजल भण्डारण का आकलन २१४ बिलियन घन मी. (बीसीएम) के रूप में किया गया है
वर्षा का जल हल्का और सबसे शुद्ध होता है। इसमें किसी प्रकार के ठोस या लवण नहीं घुले होते है। वर्षा के जल को एकत्र और संरक्षित कर मनुष्य द्वारा अपने लिए पीने योग्य जल एवं अन्य कार्यों जैसे सिंचाई तथा दैनिक कार्यों के उपयोग हेतु वर्षा के जल का प्रयोग किया जा सकता है। संपूर्ण विश्व में जल संकट जैसी समस्या से निबटने के लिए वर्षा जल संरक्षण सर्वोत्तम विकल्प है। औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण कुओं तथा तालाबों में लगातार कमी होती जा रही है और भूमिगत जल का स्तर गिर रहा है जो भविष्य में जल संकट का कारण बन सकती है। अत: जल संकट से बचने के लिए वर्षा जल संरक्षण आवश्यक है।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. पंवार द्वारा समस्त छात्र-छात्राओं को वर्षा जल संरक्षण के प्रति अपने आसपास के लोगों को जागरूक करने के लिए भी कहा गया।
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