जिंदगी…………….जिंदगी को बहुत करीब से देखा है मैंने।

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जिंदगी…………….

जिंदगी को बहुत करीब से देखा है मैंने।
साए को अपने से जुदा होता देखा है मैंने।
अब तो एतबार शब्द का अर्थ समझ नही आता।
क्योंकि इस दुनिया को पल पल बदलते देखा है मैंने।
मैं तो चल पड़ी थी मंजिले कायम करके।
लेकिन अचानक हवाओं को रुख बदलते देखा है मैंने
खैर साए को क्या दोष दे ,अगर रोशनी ही साथ छोड़ दें।
अंधेरी रात में बैठकर यह कलाम लिखा है मैंने।
कलियों की मुस्कान भूल गयी हूं ,या फिर मेरी भूल का कसूर है।
क्या करूँ हँसाने वालों से ज्यादा ,रूलाने वालों को देखा है मैंने।
खैर अगर जिंदगी मिली है ,तो जीना पड़ेगा ।
इसलिए रोकर भी हँसना ,अच्छे से सिखा है मैंने

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डॉ. कविता हर्ष
जैंती (अल्मोड़ा)

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