महिला काव्य गोष्ठी: देशभक्ति,मां बेटी,भ्रूण हत्या ,स्त्री के महत्व………….
रविवार) को अंतर्राष्ट्रीय काव्य संस्था के तत्वाधान में ‘महिला काव्य मंच अल्मोड़ा” इकाई की ओर से रामनवमी के अवसर पर काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। ऑनलाइन (Virtually) आयोजित काव्य गोष्ठी मुख्य अतिथि स्वरुप हल्द्वानी सेवरिष्ठ साहित्यकार एवं कवियत्री डॉ. भगवती पनेरू रही जबकि संचालन सोनू उप्रेती ने किया।
गोष्ठी में सबसे पहले मीनू जोशी ने मां शारदे की वंदना (गीतकाव्य) की प्रस्तुति दी। जबकि संचालिका सोनू उप्रेती ने सभी का औपचारिक परिचय दिया साथ ही ‘महिला काव्य मंच’ के मूल स्वरुप व आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों की जानकारी भी दी। इसके बाद सदस्यों ने नवरात्रि,देशभक्ति,मां बेटी,कन्या भ्रूण हत्या ,स्त्री के महत्व ,कविताओं की रचनात्मकता, प्रकृति, श्रृंगारिक एवं प्रेरक गीत काव्य जैसे अनेक समसामयिक विषयों पर आधारित अपनी रचनाएं, काव्यपाठ एवं गीतकाव्य के माध्यम से प्रस्तुत कीं..
कार्यक्रम में स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट, वर्षा जोशी,सोनू उप्रेती, प्रेमा गड़कोटी, मीनू जोशी, भगवती पनेरू एवं नीलम नेगी सहित अन्य कवियत्रियों ने काव्य वाचन एवं गीत काव्य प्रस्तुत किये..
मुख्य अतिथ डॉ. भगवती पनेरू ने सभी रचनाओं की प्रशंसा की। काव्य लेखन को और समृद्ध व परिष्कृत किये जाने हेतु सकारात्मक सुझाव दिए। उन्होंने लगभग प्रत्येक कविता के भीतर छिपी वेदना एवं अंतर्निहित भावों की विस्तृत विवेचना व सकारात्मक पक्ष को प्रकाशित एवं उद्धरित करते हुए प्रोत्साहित किया।
सभी रचनाएं प्रासंगिक विषयों विशेषकर नवरात्रि अवसर पर कन्या, बालिका एवं महिलाओं से संबंधित रहीं। अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए अंत में डॉ. भगवती पनेरू ने सभी प्रस्तुत रचनाओं का समीक्षात्मक पश्च पोषण करते हुए कार्यक्रम की प्रसंगिकता एवं सार्थकता की सराहना की तथा सतत सीखते रहने की प्रवृत्ति सृजनात्मक शक्ति को और परिष्कृत करती है इस भाव को संपुष्ट करते हुए सुंदर व स्तरीय कार्यक्रम आयोजन हेतु संयोजिका सोनू उप्रेती को बधाई दी।
कार्यक्रम के अंत में संयोजिका एवं संचालिका सोनू उप्रेती ने सभी का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम में प्रस्तुत कुछ काव्य पाठ
- तुम्हें पुकारते हुए मां शारदे तेरी शरण में आज आ रहे हैं हम
तरल ह्रदय से भाव कनिकायें चुन ये गीत गुनगुना रहे हैं हम
— मीनू जोशी (सरस्वती वंदना) - एक स्त्री अपने लकवाग्रस्त पति
के मरने पर*
सारे संघर्षं से अकेली जूझती
रोती है इस बात पर
कि अब घर आने पर गाली देने
वाला न रहा
कितना सामान्य है
स्त्री के लिए गाली सुनना
और कितना सामान्य है
पुरुष के लिए
स्त्री का समर्पण….
— प्रेमा गड़कोटी - स्त्री का नहीं होता कोई घर न मायका न ससुराल
मगर स्त्री खुद हो जाती है
मकान बनाता है पुरुष और खुद घर हो जाती है स्त्री..
— प्रेमा गड़कोटी - हिमालय–
पहाड़ के पीछे यदि मुझे
तू नज़र नहीं आता है।
तो मुझे पहाड़ में पहाड़
नज़र नहीं आता है।
आसमां….
नीला आसमां बेदद खूबसूरत
सर के उपर से हमेशा
दिवा स्वप्न दिखा ललचाता रहता है
आसमां छूने की कोशिश
करते लोग,
अक्सर ज़मीं से कदम
उखाड़ लेते हैं….
— स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट - और जब धुंध के बाद बर्फ से लकदक तू नज़र आता है
तब पहाड़ों को भी अपना वज़ूद नज़र आता है….
— स्नेहलता त्रिपाठी बिष्ट - विनती
अब पुनः जन्म लो धरती पे,
प्रभु जग की नैया अब डोल रही।
मानवता शर्म से पानी है,
पशुता सबको झंझोर रही ।
इंसा ही इंसा का प्यासा हैं,
है धर्म , ग्रंथ सिर्फ पन्नों में,
कन्या की पूजा करते है,
फिर लड़की क्यों एक भार हुई।
संबंध नहीं कर्तव्य नही,
सिर्फ पैसा सबका सगा हुआ,
पल में बिक जाते है रिश्ते,
ये कलयुग अव घनघोर हुआ।
अब चक्र सुदर्शन उठाओ प्रभु जी,
असुरों का अब संघार करो,
अस्तित्व तुम्हारा कोई भ्रम ना कहें,
ये देव भूमि तुम्हें पुकार रही ।
अब पुनः जन्म लो धरती पर,
जग की नैया अब डोल रही।।
— वर्षा जोशी पांडे ( गाज़ियाबाद) - आज देखो चारों ओर कैसा-कैसा हो रहा
मानव जीवन अन्धकार में ये खो रहा।।
— सोनू उप्रेती “साँची” - तू मीत मेरा मैं प्रीत तेरी
तू साज़ मेरा मैं गीत तेरी
तू ख़त मेरा मैंने जज़्बात तेरी
तू ताज़ मेरा मैं मुमताज़ तेरी……
— सोनू उप्रेती (सांची) मनान - उसे तुम पास रखना दिल के
दिल से दूर मत करना ।
जो कन्या पूजन करते हो,
वो भक्ति दूर मत करना ।।
तू रखना मान नारी का,
उसे चकनाचूर मत करना ।।
— डॉ.भगवती पनेरु - उसे तुम पास रखना दिल के
दिल से दूर मत करना
जो बिटिया है ज़िगर का टुकड़ा
उसे दिल से दूर मत करना……
— डॉ. भगवती पनेरू (हल्द्वानी) - सुनो ! कविता कुछ कहती है कहती है,
यहां अंतर्द्वंद्व का रेगिस्तान,
स्याह रातों का सूनापन,
दूर तक सिमटी ख़ामोशी
अनवरत प्रतीक्षा के बीच,
एक उम्मीद की किरण,
कि शब्द- शब्द बुनकर,
बूंद-बूंद नैनों से पिघल कर,
एक लंबी प्रसव पीड़ा के बाद,
कोई धीरे से कहेगा
सुनो, पैदा हुई है
सचमुच एक कविता….
— मीनू जोशी - तेरा संबल बनकर पग पग,
जीवन का आधार बनूंगी।
मान करेगी तू भी मुझ पर,
ऐसा नव आचार करूंगी ।
बस तुम मुझको धड़कन दे दो,
मां, मुझको भी जीवन दे दो……
— मीनू जोशी - और तभी कहीं चुपके से, अनकही अनसुनी सी
अनायास, व्याकुल, तोषिता सी अविरल अधीर हो
‘न जाने कब ‘कवि ह्रदय से फिर एक कविताजन्म लेती है….
— नीलम नेगी - ‘ चिंता मत करना मेरी ‘कहती है तू
पर कैसे न करुँ बेटा
आख़िर जन्म देने, पालने और
संवारने वाली माँ हूं मैं तेरी…..
— नीलम नेगी
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