आप भी पत्रकार हैं…( मैंने सोचा ) एक फूल को देखा जब मैने , खिलता हुआ देखा तो लगा , हँसता हो शायद ।
( मैंने सोचा )
एक फूल को देखा जब मैने ,
खिलता हुआ देखा तो लगा ,
हँसता हो शायद ।
बढ़ता हुआ देखा तो लगा ,
उम्र पार करता हो शायद
कुछ वक़्त बीता तो लगा ,
उसका भी वक़्त बीता हो शायद ।
मुरझाया हुआ देखा तो लगा ,
जिंदगी से रुठ गया हो शायद,
फूल का रंग रूप जैसे ,
जिंदगी ने छीन लिया हो शायद,
डाली से टूटा तो लगा ,
अपने से भी रुठ गया हो शायद,
फिर सोचा तो लगा ,
जिंदगी से बहुत दूर चला गया हो शायद,
डाली में छोटा फूल देखा तो लगा,
जिंदगी की शुरुआत करता हो शायद,
एक आया एक गया तो लगा,
जिंदगी ये ही हो शायद ,
लेखिका – डॉ कविता हर्ष
जैंती (अल्मोड़ा )
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बहुत सुन्दर. पुष्प को प्रतीक मानते हुए आशा और अनुमान भरे भावों की निरंतरता की कवितामय प्रस्तुति बहुत मनोहारी लगी . आशा है अभी और रचनाएँ सामने आयेंगी . धन्यवाद सम्पादक जी, धन्यवाद कवियित्री जी.