मानव समाज की व्यवस्था बनाने के लिए बने चारों आश्रमों की व्यवस्था छिन्न-भिन्न, अब वृद्धजनों के अनादार से बने वृद्धाश्रम

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हल्द्वानी। स्थानीय आर्य समाज में चल रहे वेदप्रचार व विश्व कल्याण यज्ञ के तीसरे दिन प्रातःकालीन सत्र में फर्रुखाबाद से पधारे आचार्य चन्द्रदेव महाराज ने कहा कि मानव समाज की व्यवस्था बनाने के लिए चार आश्रम व चार वर्ण निश्चित किये थे। व्यक्तिगत जीवन का प्रबन्धन- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम के माध्यम से किया गया था। जिसमें प्रत्येक आश्रम 25 -25 वर्ष का था और उनके कर्तव्य अलग-अलग थे।

सर्वप्रथम विद्या पढ़ने व कठोर तपस्या के साथ वेद-वेदाङ्गों  का अध्ययन करना आवश्यक था। उसके पश्चात गृहस्थ में विद्या का उपयोग( प्रैक्टिकल) करके सुखी जीवन जीना। तत्पश्चात 50 वर्ष की आयु में आने पर आत्मिक उन्नति को प्राथमिकता देते हुए सांसारिक कार्यों से वैराग्य लेकर शिक्षा व उपदेश प्रारम्भ करना ही कर्तव्य हो जाता था। चतुर्थ आश्रम संन्यास था जिसमें पूर्ण वैराग्य के साथ घूम-घूम कर समाज को बुराइयों से दूर करने के लिए परिव्राजक बनना कर्तव्य था। जब से यह व्यवस्थित आश्रम व्यवस्था छिन्न भिन्न हुई तबसे वृद्ध जनों का अनादर प्रारम्भ हुआ और आज इन चार आश्रमों को त्यागने के कारण ‘वृद्धाश्रम’ बनने लगे, ये वृद्धाश्रम मानव समाज के लिए अभिशाप हैं।

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क्योंकि जो संतानें माता-पिता की सेवा व सम्मान नहीं कर रहीं वे वृद्ध जन इन वृद्धाश्रमों में रहने को विवश हैं। वहां निराशा व हताशा का वातावरण बनता है। आचार्य ने कहा कि पुनः उसी आश्रम व्यवस्था को अपनाने की आवश्यकता है। प्रातःकाल यज्ञ के यजमान डॉ विनय खुल्लर, ममता खुल्लर, ढाल कुमारी, सोबरन शर्मा, रविकान्त माहेश्वरी, मुकेश खन्ना रहे। कार्यक्रम में मधुर भजनों की स्वरलहरी पण्डित मोहित शास्त्री व सुरेन्द्र आर्य ने प्रवाहित की। कार्यक्रम का संचालन धर्माचार्य विनोद आर्य ने किया। इस अवसर पर प्रमोद बक्शी, विजयकुमार शर्मा, भुवन अधिकारी, अनुजकान्त खंडेलवाल, जितेन्द्र साहनी, कृष्णा देवी, अविनाश उपमा सेठी,राजकुमार राजौरिया व सन्तोष भट्ट आदि उपस्थित रहे।

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