Almora: जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में कार्यशाला, इन मुद्दों पर चर्चा……….
अल्मोड़ा जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में पांच विकास खंडों का एक दिवसीय स्कूल रेडीनेस मॉड्यूल अभिमुखीकरण कार्यशाला(विद्यालय तैयारी) का उद्घाटन डाइट प्राचार्य डॉ राजेंद्र सिंह ने किया।
इस दौरान डॉ. सिंह ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत पहली ग्रेड के सभी छात्रों के लिए खेल आधारित स्कूल तैयारी मॉड्यूल के विकास की सिफारिश की गई है इस क्रम में इस मॉड्यूल का अभिमुखीकरण जनपद के सभी शिक्षकों का किया जा रहा है।
डॉ. सिंह ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए उचित वातावरण के सृजन की आवश्यकता है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में उपस्थित जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक सत्यनारायण ने कहा कि कोरोना काल में जो लर्निंग गैप हुआ है। उस गैप की भरपाई के लिए स्कूल रेडिनस व 100 दिन रीडिंग अभियान आवश्यक है। सत्यनारायण ने कहा कि इस लर्निंग गैप को भरना हमारा नैतिक दायित्व है।
एससीईआरटी के सहायक निदेशक डॉक्टर केएन बिजलवाण ने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत बुनियादी साक्षरता व संख्यात्मक ज्ञान के कौशलों के विकास के लिए 12 सप्ताह का स्कूल रीडीनेस आरोही मॉड्यूल में शारीरिक स्वास्थ्य एवं स्वच्छता तथा सामाजिक, पर्यावरण विकास ,भाषाई विकास को महत्व दिया गया है इस मॉड्यूल से सभी शिक्षकों को परिचित कराया जाना आवश्यक है ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हर बच्चे को प्रदान की जा सके।
जिला शिक्षा अधिकारी प्रारंभिक शिक्षा हरीश रौतेला ने सभी शिक्षकों का आह्वान किया कि संकुल के सभी शिक्षक आरोही मॉड्यूल से परिचित हो तथा इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अभिभावकों का भी सहयोग प्राप्त करें। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ.हेम जोशी ने कहा कि निपुण भारत के अंतर्गत गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए 1 अप्रैल 2022 से 90 दिन का स्कूल रेडीनेस कार्यक्रम प्रारंभ किया जाएगा।
डाइट के वरिष्ठ प्रवक्ता गोपाल सिंह गैड़ा ने कहा कि बच्चों के घर की भाषा को कक्षा में स्थान देने की आवश्यकता है घरेलू ज्ञान को पूर्व ज्ञान से जोड़ा जाना चाहिए। वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ बीसी पांडे ने कहा कि प्रारंभिक स्तर के सभी शिक्षकों को बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान से संबंधित प्रशिक्षण निष्ठा कार्यक्रम के अंतर्गत दिया जा रहा है। डॉक्टर दीपा जलाल ने सतत व रचनात्मक आकलन पर प्रकाश डाला। एमएस भंडारी द्वारा सीखने के प्रतिफल की जानकारी दी गई। इस कार्यक्रम में रूम टू रीड सस्ता से श्रीमती स्मृति गुप्ता ने और रूम टू रीड पर प्रकाश डाला।
इस कार्यक्रम में खंड शिक्षा अधिकारी प्रकाश जंगपांगी, श्री सुरेश आर्य, श्री हरि सिंह अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के श्री लोकेश ठाकुर, संदीप, सोनालिका ने अपने विचार व्यक्त किए। इस कार्यक्रम में डाइट के जी. जी .गोस्वामी ,डॉ हरीश जोशी ,एलम पांडे, भुवन चंद्र पांडे, पुष्पा बोरा, अशोक बनकोटी, दिनेश बिष्ट, राजेंद्र कुमार, उपा देवली, शिवा सैनी, अदिति, दीपक कुमार, उमा नेगी आदि ने सहयोग किया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पांच विकास खंडों के 53 संकुलओ के 106 शिक्षकों के द्वारा प्रतिभाग किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन डाइट के योजना प्रबंधन विभाग के प्रवक्ता डॉ हेम जोशी किया।
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धरातल में क्या होता है ये अधिक महत्वपूर्ण है . कई विद्यालयों में कई सालों से किसी भी भाषा के शिक्षक ही नहीं है, वो भी प्रारंभिक शिक्षामें. जब भाषाई विकास ही नही होगा तो बाकि क्या होगा ?!!. कहीं सात-आठ बच्चों के बीच दो अध्यापक हैं !!! शिक्षा का एक कार्यक्रम पूरा क्रियान्वित होने से पहले दूसरा कार्यक्रम आ जाता है . अध्यापकों से बात करने से पता लगता है कि अध्यापक प्रशिक्षण अधिक ले रहे हैं और बच्चे शिक्षा कम ले रहे हैं . बाकी बचे समय में अध्यापक शिक्षा से इतर कार्यों में नियोजित किये जाते हैं . जो उनकी रही सही ऊर्जा को भी शून्य कर देता है . अब तक एक ही उपलब्धि सामने आयी है कि अध्यापक बहु उद्देशीय कर्मचारी के रूप में सामने आया है . अब समय आ गया है कि शिक्षण कार्य के लिए अध्यापक सुरक्षित रखें जाएँ अन्यथा किसी भी शिक्षा नीति और प्रशिक्षण का लक्षित लक्ष्य अप्राप्य रहेगा . शिक्षण एक गंभीर पूर्णकालिक कार्य है पर इस बात के स्थान पर शिक्षकों का एक से अधिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रयोग किया जाना उचित नहीं है .
धरातल में क्या होता है ये अधिक महत्वपूर्ण है . कई विद्यालयों में कई सालों से किसी भी भाषा के शिक्षक ही नहीं है, वो भी प्रारंभिक शिक्षामें. जब भाषाई विकास ही नही होगा तो शिक्षा का बोध ही कैसे होगा ? जबकि अन्य स्कूल में सात-आठ बच्चों के होने पर ही बीच दो अध्यापक हैं !!! शिक्षा का एक कार्यक्रम पूरा क्रियान्वित होने से पहले दूसरा कार्यक्रम आ जाता है . अध्यापकों से बात करने से पता लगता है कि अध्यापक प्रशिक्षण अधिक ले रहे हैं और बच्चे शिक्षा कम ले रहे हैं . बाकी बचे समय में अध्यापक शिक्षा से इतर कार्यों में नियोजित किये जाते हैं . जो उनकी रही सही ऊर्जा को भी शून्य कर देता है . अध्यापक बहु उद्देशीय कर्मचारी के रूप में सामने आ या है . अब समय आ गया है कि शिक्षण कार्य के लिए अध्यापक सुरक्षित रखें जाएँ अन्यथा किसी भी शिक्षा नीति और प्रशिक्षण का लक्षित लक्ष्य अप्राप्य रहेगा . शिक्षण एक गंभीर पूर्णकालिक कार्य है पर इस बात के स्थान पर शिक्षकों का एक से अधिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रयोग किया जाना उचित नहीं है .