धूप तुम आती रहना……….

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घर की पुरानी छत के
छोटे-छोटे छिद्रों से
दीवारों पर बने आड़े तिरछे रोशनदानों से
बंद दरवाजों से टूटे हुए हिस्सों से
काली घनी निराश बदरियों के पीछे से
चुपके से निकलकर,
धूप, तुम आती रहना ।

ज़ेहन के गहरे धुंधलके में
उम्मीद की किरण बनकर
खामोश सर्द शामों में
सुरमई रोशनी बिखेर कर
मरती हुई मानवता के लिए
संजीवनी बनकर
धूप, तुम आती रहना।

मानव की महत्वाकांक्षा की,
पराकाष्ठा का परिणाम कम करने।

विश्व में फैली विभीषिका से
बेकस, बेदर बाशिंदों की
इच्छाशक्ति व अनुशासन बढ़ाने,
मौत के गहरे सन्नाटे के बीच,
जीने की जिजीविषा कायम रखने
धूप, तुम आती रहना

मीनू जोशी अल्मोड़ा

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